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उत्तर प्रदेश: बिहार के पिछले 5 विधानसभा चुनाव और मुख्यमंत्री की स्थिति (2005–2020)
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संक्षेप
उत्तर प्रदेश: बिहार में पहले चरण का मतदान हो चुका है. मंगलवार को दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटों पर वोटिंग होगी. 14 नवंबर को नतीजे आने के साथ यह तय हो जाएगा कि राज्य में
विस्तार
उत्तर प्रदेश: बिहार में पहले चरण का मतदान हो चुका है. मंगलवार को दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटों पर वोटिंग होगी. 14 नवंबर को नतीजे आने के साथ यह तय हो जाएगा कि राज्य में किसकी सरकार बनेगी.कौन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेगा. पिछले पांच विधानसभा चुनावों में बिहार ने दो मुख्यमंत्रियों को देखा है. वर्ष 2000 में बिहार राज्य का विभाजन हुआ. बिहार से अलग होकर झारखंड एक नया राज्य बना. बिहार विभाजन के बाद फरवरी 2005 में पहली बार चुनाव हुए. इस चुनाव में कुल 52687663 मतदाता वोट डालने के लिए पात्र थे. इनमें से 46.5 फ़ीसदी ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. जो पिछले तीन चुनावों के मुकाबले बहुत कम था. जब चुनाव के नतीजे आए तो किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला. चुनाव से पहले तक सत्ता में रही राजद को 25.1 फ़ीसदी वोट मिले. उसे 75 सीटों से संतोष करना पड़ा.जो बहुमत के 122 के आंकड़े से बहुत कम था. नीतीश कुमार की जदयू को 14.6 फ़ीसदी वोट के साथ 55 सीटें मिली. भाजपा को 37 और कांग्रेस को 10 सीटों पर जीत मिली. इनका वोट शेयर क्रमशः 11 और 5 फ़ीसदी रहा। जीतने में सफल रहा. इतने बड़े बहुमत के बाद भी नीतीश कुमार ने 5 साल में दो बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 2015 में शपथ लेने के 20 महीने बाद ही लालू परिवार पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण नीतीश कुमार ने 2017 में महागठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए का दामन फिर से थाम लिया. इसके बाद नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ सरकार बनाकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 70601372 मतदाताओं में से 58.7% ने वोट डाला. नतीजे में राजद 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई. राजद को 23.11 फ़ीसदी वोट मिले. वहीं दूसरे नंबर पर भाजपा को 19.46 वोट प्रतिशत के साथ 74 सीटें मिली थी. जदयू को 43 सीटों के साथ 15.39 वोट शेयर पर संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस को 19 सीटें और 9.48 प्रतिशत वोट मिले. महागठबंधन में शामिल वाम दलों, कांग्रेस और रा जद को मिलाकर 110 सीटें मिली. जो बहुमत से कम थी. 125 सीटें जीतकर एनडीए ने फिर एक बार सरकार बनाई. भाजपा से कम सीटें जीतने के बाद भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने. जनवरी 2024 में फिर नीतीश का मन बदला और उन्होंने एनडीए में वापसी कर ली।
रामविलास पासवान की लोजपा को 12.6 फ़ीसदी वोट के साथ 29 सीटों पर जीत मिली. एनडीए (जदयू +भाजपा) सबसे बड़ा गठबंधन था लेकिन उसे भी बहुमत से कम सीटें मिली. रामविलास पासवान की लोजपा किंगमेकर बन गई यानी उसके समर्थन से ही सरकार बन सकती थी. कई हफ्ते तक जोड़-तोड़ की कोशिश होती रही लेकिन कोई दल या गठबंधन बहुमत के आंकड़े को नहीं जुटा सका. राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा और 2005 में एक बार फिर चुनाव हुए. इस चुनाव में कुल 51385891 मतदाता वोट देने के लिए पात्र थे. इसमें से 45.8 फ़ीसदी ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. चुनाव नतीजे आए तो एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला. सबसे ज्यादा 88 सींटे जीतकर जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. जदयू को 20.46 प्रतिशत वोट मिले थे.वहीं गठबंधन में उसकी साथी भाजपा को 15.65% वोट के साथ 55 सीट पर जीत मिली. राजद को 54 और कांग्रेस को नौ सीटों पर संतोष करना पड़ा था. राजद भले ही तीसरे नंबर पर रही लेकिन उनका वोट शेयर सभी दलों में सबसे ज्यादा 23.45 फ़ीसदी था. लोजपा को कांग्रेस से एक ज्यादा यानी 10 सीटें मिली थी. जीत के बाद भाजपा और जदयू ने मिलकर सरकार बनाई. दोनों को कल 143 सीटें मिली थी. जदयू के नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री बने. 2010 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर एनडीए को जीत मिली. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. इस चुनाव में कुल 55120656 मतदाता थे. इनमें से 52.67 प्रतिशत ने वोट दिया. चुनाव नतीजे आए तो जदयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़कर 115 सीटों को जीत दर्ज की. वहीं भाजपा का 16.49 प्रतिशत वोट शेयर के साथ कुल 102 में से 91 सीटों पर जीत मिली।
एनडीए गठबंधन ने 206 सीटों पर जीत के साथ जोरदार वापसी की.नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बने. इस चुनाव में राजद और लोजपा साथ थे. इसमें राजद को 22 सीटों पर और लोजपा को केवल तीन सीटों पर जीत मिली. राजद को 18.84 और लोजपा को 6.74% वोट से संतोष करना पड़ा. नतीजे के बाद 4 साल तक तो नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के पद पर काम किया. लेकिन 2014 के आम चुनावों के समय बिहार में बड़े सियासी बदलाव हुए. प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा ने नरेंद्र मोदी का नाम सामने रखा. इससे नीतीश कुमार नाराज हो गए और एनडीए से रिश्ता तोड़कर राजद और कांग्रेस के समर्थन से सत्ता में बने रहे. हालांकि 2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश ने इन दलों से भी अलग लड़ा. राज्य की 40 में से 38 सीटों पर जदयू ने उम्मीदवार उतारे पर उसे बड़ी हार मिली. नीतीश कुमार ने इस खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी. जीतनराम मांझी को बिहार का नया मुख्यमंत्री बनाया गया. माझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश और मांझी के रिश्ते बिगड़ने लगे. अंततः 2015 में मांझी को हटाकर नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बन गए. 2015 के चुनाव में दो दशक के बाद नीतीश कुमार और लालू यादव साथ चुनाव लड़े जदयू और राजद कांग्रेस मिलकर महागठबंधन बनाया. इस चुनाव में वोट डालने के लिए पात्र 67056820 मतदाताओं में से 56.66% ने मतदान किया. नतीजे आए तो महागठबंधन को बड़ी जीत मिली. राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनाए गए. राजद को 18.35 फ़ीसदी वोट शेयर के साथ कुल 80 सीटों पर जीत मिली. वही उसकी साथी जदयू को 16.83 फ़ीसदी वोट के के साथ 71 सीटों पर जीत मिली. महा गठबंधन की एक और साथी कांग्रेस को 27 सीटें मिली. इस तरह यह महागठबंधन 178 सीटें
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