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मध्य प्रदेश: आज़ादी के बाद की नई गुलामी: सिस्टम के भीतर पनप रहा है प्रशासनिक आतंक
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संक्षेप
मध्य प्रदेश: सीमाओं के पार सक्रिय आतंकी संगठनों का असर घटा, बम और बंदूक की धमक कुछ कम हुई। परंतु क्या आतंकवाद वास्तव में समाप्त हुआ? नहीं। वह केवल रूप बदलकर, चेह
विस्तार
मध्य प्रदेश: सीमाओं के पार सक्रिय आतंकी संगठनों का असर घटा, बम और बंदूक की धमक कुछ कम हुई। परंतु क्या आतंकवाद वास्तव में समाप्त हुआ? नहीं। वह केवल रूप बदलकर, चेहरे बदलकर हमारे अपने तंत्रों के भीतर आ बैठा है। आज यह आतंक बंदूक से नहीं, फाइल और मुहर से चलता है। अब डर सीमा पार से नहीं, शासन-प्रशासन के गलियारों से पैदा होता है। जहाँ जनता न्याय की उम्मीद लेकर पहुँचती है, वहीं न्यायालयों और सरकारी दफ्तरों में आतंक का नया साम्राज्य फैला हुआ है पद का आतंक — सत्ता का नया हथियार कभी आतंकवादी आम नागरिक को डराकर अपनी सत्ता चलाता था, आज वही काम कुर्सी पर बैठे अधिकारी और कर्मचारी कर रहे हैं। किसी से घूस माँगना, किसी को फाइल के बहाने महीनों भटकाना, किसी बुज़ुर्ग या गरीब को अपमानित कर भगाना ये सब प्रशासनिक आतंक के रूप हैं। अब बंदूक की जगह कानून की भाषा में धमकी, और न्याय की जगह प्रशासनिक अन्याय ने ले ली है।
जनता की मानसिक गुलामी हमारे देश ने 1947 में राजनीतिक स्वतंत्रता तो पा ली,
पर मानसिक स्वतंत्रता अब तक नहीं मिल सकी। जनता आज भी “सरकार” शब्द से डरती है। वो अधिकारी को “सेवक” नहीं, मालिक मानती है। वो अपमान सहकर भी चुप रहती है क्योंकि उसे लगता है — “लड़ने से कुछ नहीं होगा। यही वह मानसिक गुलामी है जो आज के भारत की सबसे बड़ी कमजोरी है। जब अधिकारी ‘लोक सेवक’ नहीं, ‘लोक शासक’ बन जाए संविधान ने सरकारी कर्मचारियों को “लोक सेवक” कहा है। पर आज वे “लोक शासक” बन चुके हैं। उनका आचरण, उनका व्यवहार, उनका निर्णयसब जनता पर आतंक बनकर टूटता है। न्यायालयों में तारीख़ पर तारीख़,
कार्यालयों में फाइल पर फाइल हर जगह भय, अपमान और निराशा का वातावरण —
यह किसी भी सभ्य लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है।
समाधान जागरूकता और आत्मसम्मान इस नए आतंक से लड़ाई बंदूक या प्रदर्शन से नहीं, बल्कि जागरूकता और आत्मसम्मान से लड़ी जानी है। हर नागरिक को यह समझना होगा कि वह मालिक है, प्रजा नहीं। हर अधिकारी को यह याद दिलाना होगा कि वह सेवक है, शासक नहीं जब जनता अपने अधिकारों को जानकर, कानूनी रूप से प्रश्न पूछेगी, जवाब माँगेगी, तभी यह मानसिक आतंक टूटेगा। आज आतंकवाद सीमाओं पर नहीं, हमारे तंत्रों के भीतर पल रहा है। जब तक जनता डरती रहेगी, यह आतंक बढ़ता रहेगा। समय आ गया है कि जनता अपने मन से गुलामी की जंजीर तोड़े और सच्चे अर्थों में आज़ाद भारत का नागरिक बने।
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