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उत्तर प्रदेश: ढह रही जातीय गोलबंदी, महिला मतदाता बनीं किंगमेकर
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संक्षेप
उत्तर प्रदेश: बिहार ने बोलना शुरू कर दिया है. इस बार आवाज नारे से नहीं ईवीएम की खामोशी से निकली है. बिहार चुनाव के पहले चरण में रिकॉर्ड वोटिंग ने उसे शांति के तह खोल दी है जो पूरे राज्य में पसरी थी. रैलियां थीं, भाषण थे, लेकिन मतदाता ने चुप रहकर जवाब दिया. अब यह जवाब कई मायनो में नया और क्रांतिकारी है, जाति की परंपरागत दीवारें बहुत तो न
विस्तार
उत्तर प्रदेश: बिहार ने बोलना शुरू कर दिया है. इस बार आवाज नारे से नहीं ईवीएम की खामोशी से निकली है. बिहार चुनाव के पहले चरण में रिकॉर्ड वोटिंग ने उसे शांति के तह खोल दी है जो पूरे राज्य में पसरी थी. रैलियां थीं, भाषण थे, लेकिन मतदाता ने चुप रहकर जवाब दिया. अब यह जवाब कई मायनो में नया और क्रांतिकारी है, जाति की परंपरागत दीवारें बहुत तो नहीं, लेकिन थोड़ी हिली है. सबसे बड़ी बात महिलाएं चुनाव की असली धुरी यानी किंगमेकर बनती दिख रही हैं. यह मतदान न केवल विकास की बात कर रहा है, बल्कि एक अलग बदलाव की आहट भी दे रहा है. चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि मतदान प्रतिशत बढ़ने का अहम कारण मतदाता सूची की शुद्धता भी है. एसआईआर के तहत लगभग 35 से 65 लाख फर्जी और मृत नामों को हटाया गया है. इस तकनीकी सुधार ने न सिर्फ वोटिंग को अधिक वास्तविक बनाया बल्कि हर जागरूक वोट का वजन भी बढ़ा दिया. इस साफ सुथरी सूची के बाद पहली बार वोट देने वाले युवा और ग्रामीण महिलाएं सबसे बड़ी सहभागी बनकर उभरे हैं।
बृहस्पतिवार को पहले चरण के मतदान में सुबह से लेकर शाम तक बूथों के बाहर दिखी लंबी कतारें किसी एक दल की नहीं, बल्कि बदलते बिहार की सशक्त तस्वीर थी. महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया. कई जगह तो अंतर 5 से 7% तक पहुंचा. यह कोई आकस्मिक प्रवृत्ति नहीं, बल्कि राजनीतिक चेतना का प्रमाण है. पिछले दो चुनावों में भी यह रुझान दिखा था, लेकिन इस बार महिला मतदाता स्पष्ट रूप से निर्णायक भूमिका मे आ गईं. 35% आरक्षण और स्वयं सहायता समूहों के नेटवर्क ने सुरक्षा और सम्मान का भाव दिया. दूसरी और तेजस्वी ने माई- बहन -मान योजना, 2500 रूपए प्रतिमाह और उच्च शिक्षा में सब्सिडी जैसे वादों के जरिए सीधे आर्थिक लाभ का कार्ड खेला. इन दोनों ध्रुवों के बीच महिला मतदाता अब खुद को लाभार्थी से ज्यादा निर्णायक मान रही हैं. ग्रामीण बिहार में सुरक्षा, रोजगार और सम्मान जैसे मुद्दों ने इस वर्ग को जाति आधारित वोटिंग से बाहर निकाल कर विकास और भरोसे पर टिके नए समीकरणों पर मतदान करने के लिए प्रेरित किया है. पहले चरण के वोटिंग का दूसरा सबसे बड़ा संकेत पारंपरिक जातीय गोलबंदियों का टूटना है. यह मिथक अब टूट रहा है कि बिहार का मतदाता जाति के आधार पर सीमेंटेड सेगमेंट में बंटा है. आस्था अब सिर्फ पार्टी तक नहीं रही, बल्कि क्षेत्रीय सामाजिक समीकरणों और उम्मीदवार की व्यक्तिगत पकड़ के हिसाब से वोटिंग हुई. इसका सबसे बड़ा उदाहरण तेजस्वी यादव की अपनी राघोपुर सीट है। यादव बाहुल्य क्षेत्र में भी भाजपा प्रत्याशी सतीश यादव को अप्रत्याशित समर्थन मिला।
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