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उत्तर प्रदेश: बिहार की जनता ने तोड़ा 73 वर्षों का रिकॉर्ड, 2025 की चुनाव में 66 फ़ीसदी हुए गए मतदान
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संक्षेप
उत्तर प्रदेश: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मतदान मंगलवार को समाप्त हो गए. पहले चरण में कुल 65.08 फ़ीसदी मतदान दर्ज किया गया, जो आजादी के बाद सर्वाधिक रहा.
विस्तार
उत्तर प्रदेश: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मतदान मंगलवार को समाप्त हो गए. पहले चरण में कुल 65.08 फ़ीसदी मतदान दर्ज किया गया, जो आजादी के बाद सर्वाधिक रहा. अब दूसरे चरण के मतदान के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने बताया कि दोनों चरणों को मिलाकर करीब 66.90 फ़ीसदी मतदान हुआ है। सभी आंकड़े आने के बाद मतदान प्रतिशत और बढ़ेगा. दूसरे चरण में मतदाताओं ने 69 फ़ीसदी मतदान किया है. इन आंकड़ों के सामने आने के बाद दिलचस्प समीकरण सामने आ रहे हैं. वर्ष 2020 की तुलना में 2025 में करीब 10 फ़ीसदी अधिक मतदान दर्ज किया गया है. पहले चरण में 2020 में 55.83 फ़ीसदी वोट डाले गए. 5 साल के बाद 9.26 फ़ीसदी अधिक वोट डाले गए. दूसरे चरण में 5 साल पहले 58.65 फ़ीसदी वोट डाले गए. 2025 के चुनाव में दूसरे चरण की वोटिंग लगभग 69 फ़ीसदी दर्ज की गई. इससे पहले 1952 में कराए गए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2020 तक 17 बार विधानसभा चुनाव कराया जा चुके हैं. अब तक कराए गए चुनाव में केवल तीन बार ऐसे मौके आए हैं जब मतदान 60 फ़ीसदी से अधिक हुआ है. हालांकि यह भी एक रोचक तथ्य है कि 60 प्रतिशत से अधिक वोटिंग होने पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सरकार बनाने में कामयाब रही है।
इस साल का चुनाव इसलिए दिलचस्प है क्योंकि कई दशकों के बाद जनसुराज पार्टी के रूप में एक तीसरा दल प्रदेश की 200 से अधिक सीटों पर ताल ठोक रहा है. इस आधार पर चुनावी विश्लेषक इस चुनाव को त्रिकोणीय टक्कर भी मान रहे हैं. देश की आजादी के बाद बिहार में पहली बार साल 1952 में विधानसभा चुनाव कराये गये. इस वर्ष महज 39.51 फ़ीसदी मतदान हुआ और कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी. श्रीकृष्ण मुख्यमंत्री बने. 1957 में कराए गए चुनाव में मतदान प्रतिशत लगभग 1.8 फ़ीसदी बढ़ा. 41.32 प्रतिशत वोटिंग के बाद चुनाव जीतने वाले श्रीकृष्ण ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इस सरकार का कार्यकाल पूरा होने पर 5 साल बाद फिर से चुनाव कराए गए. 1962 में कराए गए इस चुनाव में मतदाताओं ने थोड़ा और उत्साह दिखाया. इस साल वोटिंग में 3 प्रतिशत से अधिक उछाल दर्ज किया गया. 44.47 फ़ीसदी मतदान के साथ कांग्रेस पार्टी एक बार फिर गद्दी पर काबिज रही. हालांकि इस बार मुख्यमंत्री बदल गए. दरअसल, 13 साल 169 दिन तक मुख्यमंत्री रहने के बाद श्रीकृष्णा सिंह का 31 जनवरी, 1961 को देहांत हुआ।
इसके बाद हाजीपुर के विधायक रहे दीप नारायण सिंह को 17 दिन का कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाया गया. राजमहल विधानसभा सीट से निर्वाचित विधायक विनोदानंद झा फरवरी, 1961 में मुख्यमंत्री बने. इसके बाद कांग्रेस के एक अन्य नेता कृष्ण बल्लभ सहाय ने अक्टूबर, 1963 में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली. मार्च 1967 में पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई और महामाया प्रसाद मुख्यमंत्री बने. पहली बार राज्य में 50 फ़ीसदी से अधिक मतदान हुआ. पहली बार त्रि शंकु चुनाव हुए और 51.51 प्रतिशत वोटिंग वाले इस चुनाव में 1 साल 117 दिन के भीतर 4 मुख्यमंत्रियों ने शपथ ली. महामाया प्रसाद सिन्हा 329 दिन मुख्यमंत्री रहे, जबकि उनके बाद सतीश प्रसाद सिंह, बीपी मंडल ने सीएम की कुर्सी संभाली. मार्च 1968 में मुख्यमंत्री की कुर्सी फिर एक बार कांग्रेस के पास आई. पार्टी नेता भोला पासवान शास्त्री 99 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे. बिहार का अगला आम चुनाव साल 1969 में हुआ. इस चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी सरकार बनाने में सफल रही, हालांकि यह दौर सियासी अस्थिरता का भी रहा, क्योंकि कार्यकाल पूरा होने से पहले ही 1972 में फिर से चुनाव कराने की नौबत आ गई. दोनों ही साल 52.79 प्रतिशत वोटिंग हुई. भारतीय लोकतंत्र के सबसे चुनौती पूर्ण कालखंड के तौर पर देखे गए. आपातकाल के महीनों के बीतने के बाद 1977 में फिर से चुनाव कराए गए. इस साल 50.51 फ़ीसदी वोटिंग हुई और इस बार जनता पार्टी सरकार बनाने में कामयाब रही. जून, 1977 में कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. पहली बार उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के नेता के रूप में दिसंबर, 1970 में सीएम की कुर्सी संभाली थी और 162 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे थे. 1980 में कराए गए चुनाव में बीते सभी चुनावों से सर्वाधिक 57.28 प्रतिशत वोट डाले गए.कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में लौटी और जगन्नाथ मिश्र ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. यह भी रोचक है कि कांग्रेस इस समय तक दो फाड़ हो चुकी थी. इंदिरा गांधी की खेमे वाली पार्टी कांग्रेस(आई ) मे शामिल कई नेता अगले 10 साल की अवधि में मुख्यमंत्री बनते रहे. 1985 में कराए गए चुनाव में 56.27 प्रतिशत वोटिंग के बाद कांग्रेस ने एक बार फिर सरकार बने 1985 से 1990 के बीच कांग्रेस पार्टी का बिखराव दिखा और 5 साल की अवधि मे राज्य को चार मुख्यमंत्री मिले. इसके बाद बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव का उदय हुआ. जनता दल के नेता लालू पहली बार मार्च, 1990 में मुख्यमंत्री बने. उन्होंने 5 साल 18 दिन तक राज्य की सत्ता संभाली. यहीं से शुरू हुआ बिहार में 60 फ़ीसदी से अधिक वोटिंग का दौरा. राज्य विधानसभा के लिए कराये गये लगातार तीन आम चुनावों में 60 फ़ीसदी से अधिक मतदान हुआ और जनता दल सरकार बनाने में सफल रही. इसके बाद बिहार की राजनीति में चारा घोटाला का जिक्र शुरू हुआ. 262 दि नों के राष्ट्रपति शासन के बाद राज्य में वर्ष 2005 में विधानसभा चुनाव कराए गए. यहां से विधानसभा चुनाव में गठबंधन की राजनीति का नया दौर शुरू हुआ. नीतीश कुमार पहली बार पूर्णकालिक मुख्यमंत्री बने.इससे पहले उन्होंने केवल 7 दिन के लिए कार्यकारी मुख्यमंत्री के रूप में कुर्सी संभाली थी. फरवरी, 2005 में कराए गए चुनाव में 46.50 प्रतिशत मतदान हुए, लेकिन किसी दल को बहुमत नहीं मिला. नतीजत न करीब 8 महीने तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा और मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली रही. इसके बाद नीतीश कुमार ने नवंबर 2005 में मुख्यमंत्री की शपथ ली. अब बीते 20 साल से अधि
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